मांगलिक दोष में भ्रान्तियों का निवारण
विवाह के समय वर या कन्या की जन्म कुंडली मिलान करते हुए अष्टकूट के साथ -साथ मांगलिक दोष पर भी विचार किया जाता है | अधिकांश ज्योतिषी इस महत्वपूर्ण विषय पर विचार करते हुए कुछ मुहूर्त ग्रंथों के अप्रमाणिक एवम तर्क हीन वाक्यों का आधार ले कर त्रुटि पूर्ण मिलान करते हैं तथा फलित शास्त्र के महत्व पूर्ण सूत्रों कि उपेक्षा करते हैं|ऐसा करते हुऐ ये दैवज्ञ शास्त्र एवम समाज दोनों को हानि पहुंचाते हैं |इस प्रकार के त्रुटि पूर्ण मिलान वाले विवाह प्रायः सफल नहीं होते तथा ज्योतिष शास्त्र में अविश्वास होता है ||क्या है मांगलिक दोष ?
जन्म कुंडली में 1,4,7,8,12 वें भावः में यदि मंगल स्थित हो तो वर अथवा कन्या को मंगली कहा जाता है तथा उसका विवाह मंगली वर /कन्या से करना शुभ समझा जाता है |मंगल ग्रह को ज्योतिष ग्रंथों में रक्त प्रिय एवम हिंसा व विवाद का कारक कहा गया है |सातवाँ भाव जीवन साथी एवम गृहस्थ सुख का है |इन भावों में स्थित मंगल अपनी दृष्टि या स्थिति से सप्तम भाव अर्थात गृहस्थ सुख को हानि पहुँचाता है |दैवज्ञॉ की एक बड़ी संख्या जन्म कुंडली में उपरोक्त स्थानों पर मंगल को देख कर वर या कन्या को तत्काल मंगली घोषित कर देती है फ़िर चाहे मंगल नीच राशिः में हो या उच्च में ,मित्र राशिः में हो या शत्रु में | मंगल दोष के परिहार को या तो अनदेखा किया जाता है या शास्त्रीय नियमों की अवहेलना करने वाले परिहार वाक्यों को लागू करके त्रुटि युक्त मिलान कर दिया जाता है |क्या कहते हैं ज्योतिष के शास्त्रीय मूलभूत नियम ?
फलित ज्योतिष के सर्वमान्य ग्रंथों के अनुसार जो ग्रह अपनी उच्च ,मूल त्रिकोण ,स्व ,मित्र राशिः –नवांश में स्थित ,वर्गोत्तम ,षड्बली ,शुभ ग्रहों से युक्त -दृष्ट हो वह सदैव शुभकारक होता है |इसी प्रकार नीचस्थ ,अस्त ,शत्रु राशिस्थ ,पापयुक्त ,पाप दृष्ट ,षड्बल विहीन ग्रह अशुभ कारक होता है |नीचस्थो रिपु राशिस्थ खेटो भावविनाशकः| मूल स्व तुंग मित्रस्थो भाव वृद्धि करो भवेत् || [ जातक - पारिजात ] नीचारिगो भाव विनाश कृत्खगःसमः समर्क्षे सखि भे त्रिकोण भे | स्वोच्चे स्व भे भावचय प्रदः फल दुःस्थेस्व सत्सत्सु विलोम || [ज्योतिस्तत्व ] पाप ग्रहभी यदि स्व , उच्च , मित्र राशि –नवांश ,वर्गोत्तम ,शुभ युक्त , शुभ दृष्ट हों तो शुभ कारक होते हैं , देखिये : स्वीय तुंग सखि सदभ संस्थित पामरोअपि यदि सत्फलम व्रजेत | [ भाव मंजरी ] पाप ग्रहा बलयुताः शुभ वर्ग संस्था सौम्या भवन्ति शुभ वर्गग सोम्य दृष्टाः| [जातका देश मार्ग ]उपरोक्त सन्दर्भों से यह स्पष्ट है कि जन्म कुंडली के 1,4,7,8,12,वें भाव में स्थित मंगल यदि स्व ,उच्च मित्र आदि राशि -नवांश का ,वर्गोत्तम ,षड्बली हो तो मांगलिक दोष नहीं होगा जब कि अधिकाँश दैवज्ञ उस वर /कन्या को मांगलिक घोषित करके कितना अनर्थ करते हैं |
कुण्डली में जब प्रथम, चतुर्थ, सप्तम, अष्टम अथवा द्वादश भाव में मंगल होता है तब मंगलिक दोष लगता है.इस दोष को विवाह के लिए अशुभ माना जाता है.यह दोष जिनकी कुण्डली में हो उन्हें मंगली जीवनसाथी ही तलाश करनी चाहिए ऐसी मान्यता है.ज्योतिशास्त्र में कुछ नियम बताए गये हैं जिससे वैवाहिक जीवन में मांगलिक दोष नहीं लगता है,
- ज्योतिष विधा के अनुसार अगर कुण्डली में चतुर्थ और सप्तम भाव में मंगल मेष अथवा कर्क राशि के साथ योग बनाता है तो मंगली दोष लगता है.
- इसी प्रकार द्वादश भाव में मंगल अगर मिथुन, कन्या, तुला या वृष राशि के साथ होता है तब भी यह दोष पीड़ित नहीं करता है. मंगल दोष उस स्थिति में प्रभावहीन होता है जबकि मंगल वक्री हो या फिर नीच या अस्त.सप्तम भाव में अथवा लग्न स्थान में गुरू या फिर शुक्र स्वराशि या उच्च राशि में होता है तब मांगलिक दोष वैवाहिक जीवन में बाधक नहीं बनता है.
- सप्तम भाव में स्थित मंगल पर बृहस्पति की दृष्टि हो तो कुण्डली मांगलिक दोष से पीड़ित नहीं होती है .
- मंगल गुरू की राशि धनु अथवा मीन में हो या राहु के साथ मंगल की युतिहो तो व्यक्ति चाहे तो अपनी पसंद के अनुसार किसी से भी विवाह कर सकता है क्योंकि वह मांगलिक दोष से मुक्त होता है.
- अगर जीवनसाथी में से एक की कुण्डली में मंगल दोष हो और दूसरे की कुण्डली में उसी भाव में पाप ग्रह(malefic planet) राहु या शनि स्थित हों तो मंगल दोष कट जाता है.
- इसी प्रकार का फल उस स्थिति में भी मिलता है जबकि जीवनसाथी में से एक की कुण्डली के तीसरे, छठे या ग्यारहवें भाव में पाप ग्रह राहु, मंगल या शनि मौजूद हों.
- अगर कुण्डली के प्रथम, चतुर्थ, सप्तम, अष्टम एवं द्वादश भाव में से किसी में मंगल मौजूद है और साथ में बृहस्पति या चन्द्रमा है तो मांगलिक दोष को लेकर परेशान नही होना चाहिए.
- चन्द्रमा अगर केन्द्र स्थान (center house)में है तब भी व्यक्ति को मांगलिक दोष से मुक्त समझना चाहिए.
- यदि मंगल इन भावों में स्व ,उच्च ,मित्र राशिः –नवांश का हो |
- यदि मंगल इन भावों में वर्गोत्तम नवांश का हो |
- यदि इन भावों में स्थित मंगल पर बलवान शुभ ग्रहों कि पूर्ण दृष्टि हो |
मांगलिक दोष उपचार:
अगर वर वधू की कुण्डली में इस प्रकार की ग्रह स्थिति नहीं है और मंगली दोष के कारण उससे शादी नहीं कर पा रहे हैं जिसे आप जीवनसाथी बनाने की इच्छा रखते हैं तब मंगलिक दोष के प्रभाव को कम करने के लिए कुछ उपचार कर सकते हैं.ज्योतिषशास्त्र में उपचार हेतु बताया गया है कि यदि वर मंगली (mangli)है और कन्या मंगली नहीं तो विवाह के समय वर जब वधू के साथ फेरे ले रहा हो तब पहले तुलसी के साथ फेरे ले ले इससे मंगल दोष तुलसी पर चला जाता है और वैवाहिक जीवन में मंगल बाधक नहीं बनता है.इसी प्रकार अगर कन्या मंगली है और वर मंगली नहीं है तो फेरे से पूर्व भगवान विष्णु के साथ अथवा केले के पेड़ के साथ कन्या के फेरे लगवा देने चाहिए. जिनकी कुण्डली में मांगलिक दोष है वे अगर 28 वर्ष के पश्चात विवाह करते हैं तब मंगल वैवाहिक जीवन में अपना दुष्प्रभाव नहीं डालता हैजन्म कुंडली
क्या 28 वें वर्ष के बाद मांगलिक दोष नहीं रहता ?
यह दोष पूर्ण अवधारणा बहुत प्रचलित है |मंगल 28 वें वर्ष में अपना शुभाशुभ फल प्रदान करता है यह सत्य है किन्तु अपनी दशा ;अन्तर्दशा ,प्रत्यंतर दशा या गोचर में कभी भी अपना अशुभ फल प्रगट कर सकता है |अतः 28 वें वर्ष के बाद मांगलिक दोष की निवृति नहीं होती |क्या शनि या राहु से युक्त मंगल होने पर मांगलिक दोष नहीं रहता ? कुछ मुहूर्त ग्रंथों मैं ऐसे वाक्य मिलते हैं कि शनि या राहु से युक्त मंगल होने पर मांगलिक दोष नहीं रहता किन्तु ये वाक्य फलित ज्योतिष के शास्त्रीय नियमों के विरूद्व हैं | यह सर्वमान्य फलित ज्योतिष सिद्धांत है कि पाप ग्रह कि युति किसी ग्रह के पाप फल मैं वृद्धि करती है उसका दोष दूर नहीं करती |
देखिये : नीचादी दुः स्थगे भूमि सुते बल विवर्जिते | पाप युक्ते पाप दृष्टे सा दशा नेष्ट दायिका || [ बृहत् पाराशर ] नीच शत्रु गृहम प्राप्ताः शत्रु निम्नांश सूर्य गाः | वि वर्णाः पाप संबंधा दशां कुर्मुर शोभनाम || [सारावली]बृहत् पाराशर के अनुसारविकलः पाप संयुतः अर्थात पापी ग्रह से युक्त ग्रह विकल अवस्था का होगा तथा दोष कारक होगा अतः स्पष्ट है की शनि या राहु की युति से मांगलिक दोष की निवृति नहीं अपितु वृद्धि होगी क्योंकि ये दोनों ग्रह पापी हैं और मंगल के अशुभ फल में वृद्धि करेंगे |
उपरोक्त तथ्यों से यही निष्कर्ष निकलता है कि मांगलिक दोष का निर्णय वर तथा कन्या कि जन्म कुंडलियों का सावधानी पूर्वक अनुशीलन करके करना चाहिए तथा जल्दबाजी से किसी परिणाम पर नहीं पहुंचना चाहिए | ऐसा करके ही हम समाज व शास्त्र का हित कर सकते हैं |